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Sunday, June 28, 2015

सब एक ही थैले के चट्टे-बट्टे है |

   
Tarit Das
June 28 at 1:07pm
 
सब एक ही थैले के चट्टे-बट्टे है | 

सुषमा-स्मृति-वसुंधरा मामले में नरेंद्र मोदीजी की चुप्पी बीजेपी को महँगी पड़ सकती है | 'न खाऊंगा न खाने दूंगा' जैसा नारा तो ढकोसला बन कर ही रह गया है | मोदीजी और अपने साथियों की पोल अब खुलने लगी है | एक साल में ही इस तरह की कलाबाजी तो इस अंदेशा का जन्म दे रहा है कि यह सिर्फ एक बड़े पहाड़ की चोटी मात्र है, नहीं पता कि उस पहाड़ का आकार कितना बड़ा है | लगता है कि जनता को फिर से धोखा लग गया | आम जनता कि यह दुर्भाग्य है कि ऐसा ही धोखा वे बारबार खाते आये है | मनमोहन को मौनी बाबा कहकर तो उपहास का पात्र बना दिए थे, पर अब मोदी को कौन से आभूषणों से करना है ? 
सुषमा पर यह आरोप है कि वे भारतीयों मूल के ब्रिटिश पार्लियामेंट के सदस्य कीथ भाज से ललित मोदी को वीजा देने के लिए सहायता करने को लिखा था | आईपीएल मामले में फंसे ललित मोदी के लिए इस सिफारिश की खबर प्रकाशित होने पर उनकी सफाई कि ललित की पत्नी के कैंसर के इलाज पर मानवीय दृष्टिकोण से ऐसा किया गया था, बिलकुल बेबुनियाद लगती है | पार्लियमेंट के विपक्ष दल के नेता की हैसियत से उन्हें फरारी ललित को देश में वापस लाने की कोशिश करनी चाहिए थी | सुषमा और ललित के परिवारों के बीच के रिश्ते को लेकर जो खुलासा हुआ है, उससे साफ़ जाहिर है कि अपने पद का दुरूपयोग करके ही ऐसा किया गया था | पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह को यूपीए सरकार ने इस्तीफा देने को मजबूर किया था, लेकिन भाजपा सरकार ने उनका बचाव करना चाहते है और इसीलिए प्रधानमंत्री ने अपने को मौन रखा | 
वसुंधरा के खिलाफ आरोप तो इससे भी ज्यादा गंभीर है | वसुंधराजी ने यह जानते हुए कि ललित के खिलाफ देश में काले धन मामले में मुकद्दमा चल रहा है, ब्रिटिश सरकार को ललित मोदी के ब्रिटेन में रहने की अनुमति देने के आवेदन को समर्थन किया था | सिर्फ यह ही नहीं, साथ ही साथ यह शर्त भी लगाया गया था कि इस खबर को गुप्त रखा जाय और भारतीय सरकार को इस समर्थन का जानकारी न हो पाय | एक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते हुए इस तरह का उल्लंघन संविधान के खिलाफ है और इतनी गहरी आरोप के बावजूद भी प्रधानमंत्री ने मुहं नहीं खोला | वसुंधरा के बेटे से मरिसस का रास्ता पकड़कर ललित मोदी का रिश्ता बिलकुल आईने की तरह साफ़ दिखने पर भी इस तरह का मौनावलम्बन किस ओर इशारा करता है ? 
स्मृति पर तो संविधान के नाम पर शपथ लेने के वाबजूद चुनाव आयोग को अपने शैक्षणिक योग्यता बारे में गलत बयान देने का आरोप है | सन २००४ में अपने को बी. ए. और २०१४ में बी. काम. पार्ट ओयन घोषित कर चुनाव आयोग को गलत सूचना दिया गया था | ऐसे ही गलत बयान देने पर दिल्ली के कानून मंत्री को गिरफ्तार किया गया था और आम आदमी पार्टी के तरफ से उन्हें दल से बहिष्कार भी किया गया | लेकिन इस मामले में भी मोदीजी की चुप्पी एक दोहरी मापदंड अपनाने की ओर ही इशारा करता नजर आता है | 
'आप करें तो पाप और मैं करू तो जप' की नीति के आधारपर किसी भी राजनीतिक दल को दूसरों के किये पर कींचड़ उछालने का मंत्र को अपना लक्ष मानकर चलने की बीजेपी के चाल में कोई दम नहीं नजर आ रहा है | अपने ही जाल में फंसते हुए बीजेपी को अब बिपक्षों के कमजोरी का सहारा लेना पड़ रहा है, यह बड़ी दुर्भाग्यवाली बात है | सत्ता मिलने के बाद मोदीजी ने अपने और अपने पार्टी को लेकर काफी ढिंढोरा पीटा था, अब उसकी आवाज़ फीका पड़ती जा रही है | 
इस लेख का मतलब व्यकिगत रूप से मोदीजी को किसी आर्थिक या राजनीतिक भ्रष्टाचार से जोड़ना कतई नहीं है | परन्तु जिस तरह वे इन सारे घटनाओं पर चुप्पी साधने का निर्णय लिया है, उसके लिए जनता में उनकी छबि निश्चित रूप से काफी निचे चली गई | मनमोहन सिंह को मौनी बाबा कहकर खिल्ली उड़ाना तो बिपक्ष बीजेपी का शगल बन गया था, और अब मोदी के लिए तो बोलती ही बंद हो गई | कुछ अनाप-शनाप बातें जरूर इधर-उधर से आ रही है, लेकिन उससे अपने को मुक्त करने के बजाय और ज्यादा ही भ्रष्ट साबित कर रहे है | मनमोहन सिंह के ज़माने में तो ए. के . राजा और कानिमोजी को जेल जाना पड़ा और पवन बंसल को इस्तीफा ही देने पड़ा था | इस मामले में तो मोदी मनमोहन से भी ज्यादा निकम्मा नजर आ रहे है | सिर्फ इतना ही नहीं, कुछ नेताओं के बयान से तो यह भी जाहिर है कि बीजेपी आम जनता को भी बेवकूफ समझ रहे है | हाल में हुए दिल्ली चुनाव में करारी हार के बाद में भी अकल नहीं खुली है | अब अडवाणी के वयान तो कटे पर नमक छोड़ने का काम कर रहा है | निश्चित रूप से इस संकट का जड़ काफी गहरा है | आर्थिक घोटाले में पार्टी के चोटी के नेताएं इस कदर फंसे हुए है कि कोई कार्रवाई करने पर पार्टी को बिखर जाना निश्चित लगता है | शायद यह ही कारण है कि मोदी जी इस बारे में अपनी जवान नहीं खुल रहे है | क्या वह इससे अपना बचाव कर पाएंगे ? 
इस मामले में देश के आम जनता तो बेहद बदनसीब लगते है और अपने को और ही बदतर स्थिति में महसूस कर रहे है | उनके लिए तो अब खाई और कुआँ के बीच किसी एक को चुनने का ही अवसर रह गया है, साफ़-सुथरी सड़क तो कहीं नजर नहीं आ रही | इस तरह बार-बार धोखा खाना भी लोकतंत्र के लिए खतरनाक साबित हो सकता है | लोकतंत्र से आस्था हट जाने से देश की हालात किस हद तक बिगड़ सकती है, इसका उदहारण तो इतिहास में मौजूद है | फिर भी नेताओं ने ऐसे खरतनाक खेल से बाज नहीं आ रहें | 
भ्रष्टाचार का जड़ कितने गहरे तक गाड़ा हुआ है शायद इसका अंदाजा देश के तमाम लोगों को मालूम हो गया | गरीबों के लिए कुछ कर दिखाना और तरक्की दिलाने के नारे को भी चुनाव जितने के हथकंडे के रूप में ही आम जनता दिखने लगे है | कोई नेता झूठी वादे और मजबूत संगठन के जरिये सत्ता हासिल तो कर सकता, लेकिन भ्रष्टाचार दुरीकरण ? वो हमारे आर्थिक-सामाजिक ढांचा का अंग बन गया, इस ढांचा में बदलाव के बिना भ्रष्टाचार दूर करना संभव नहीं लगता | 
आम आदमी पार्टी को अभी भी पूरी तरह आजमाया नहीं जा सका है | आखिर वक्त ही बतलायेगा क्या वो जनता के दिल को जीत पायेगा की नहीं | 
और बाकी राजनीतिक पार्टियां ? सब एक ही थैले के चट्टे-बट्टे है |

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