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Friday, July 31, 2015

अख़बार और मज़दूर अन्‍तोनियो ग्राम्‍शी

अख़बार और मज़दूर

अन्‍तोनियो ग्राम्‍शी
gramsciयह सदस्यता अभियानों का दौर है। बुर्जुआ अख़बारों के सम्पादक और प्रशासक अपने माल की ओर राहगीरों (यानी कि पाठकों) का ध्यान आकर्षित करने के लिए अपनी डिस्प्ले विण्डो को सँवारते हैं, अपनी दुकान के साइनबोर्डों पर थोड़ा वार्निश लगाते हैं और अपील करते हैं। उनके माल चार या छह पृष्ठों के अख़बार होते हैं जो प्रेस के निर्माताओं और व्यापारियों के लिए उपयुक्त मौजूदा राजनीति के तथ्यों का अहसास करने और उन्हें समझने के तरीक़ों को पाठक के दिमाग़ में घुसेड़ने के लिए हर सुबह या हर शाम निकलते हैं।
हम, ख़ासतौर पर मज़दूरों के साथ, इस मासूम सी दिखने वाली हरकत के महत्व और इसकी गम्भीरता पर चर्चा करना चाहेंगे, जो आपके द्वारा सदस्यता लेने के लिए अख़बार को चुनने में निहित है। यह प्रलोभनों और ख़तरों से भरा हुआ चयन है जिसे कसौटी पर कसते हुए एवं परिपक्व मन्थन के बाद सचेतन तौर पर किया जाना चाहिए।
सर्वोपरि, मज़दूर को बुर्जुआ अख़बार के साथ किसी भी प्रकार की एकजुटता को दृढ़ता से ख़ारिज करना चाहिए। और उसे हमेशा, हमेशा, हमेशा यह याद रखना चाहिए कि बुर्जुआ अख़बार (इसका रंग जो भी हो) उन विचारों एवं हितों से प्रेरित संघर्ष का एक उपकरण होता है जो आपके विचार और हित के विपरीत होते हैं। इसमें छपने वाली सभी बातें एक ही विचार से प्रभावित होती हैं: वह है प्रभुत्वशाली वर्ग की सेवा करना, और जो आवश्यकता पड़ने पर इस तथ्य में परिवर्तित हो जाती है: मज़दूर वर्ग का विरोध करना। और वास्तव में, बुर्जुआ अख़बार की पहली से आखि़री लाइन तक इस पूर्वाधिकार की गन्ध आती है और यह दिखायी देता है।
लेकिन ख़ूबसूरत – जो कि वास्तव में बदसूरत है – चीज़ यह है कि बुर्जुआ वर्ग के पक्ष में किये जाने वाले इस निर्दयी काम के लिए बुर्जुआ वर्ग से धन लेने के बजाय, बुर्जुआ अख़बार उन्हीं मेहनतकश वर्गों से धन भी जुटाते हैं जिनका वे हमेशा विरोध करते हैं। और मज़दूर वर्ग भुगतान करता है; ठीक समय पर, उदारतापूर्वक।
लाखों मज़दूर बुर्जुआ अख़बारों को नियमित रूप से और रोज़ अपने पैसे देते हैं, इस तरह उनकी ताक़त बढ़ाने में सहायता करते हैं। क्यों? यदि यह प्रश्न आपको उस पहले मज़दूर से पूछना पड़ा हो जिसे आपने ट्राम में अथवा सड़क पर बुर्जुआ अख़बार लिये देखा हो तो आपको जवाब मिला होगा: ‘क्योंकि मुझे यह जानने की ज़रूरत है कि क्या हो रहा है।’ और यह बात उसके दिमाग़ में कभी नहीं घुसती कि ख़बरों और उन्हें पकाने वाली सामग्रियों को ऐसी कला से उजागर किया जाता है जो एक निश्चित दिशा में उसके विचारों को मोड़ती है एवं उसकी आत्मा को प्रभावित करती है। और फिर भी उसे पता है कि यह अख़बार अवसरवादी है, दूसरा वाला धनिकों के लिए है, तीसरे, चौथे, पाँचवें अख़बार राजनीतिक दलों से जुड़े हैं जिनके हित उसके हित से बिल्कुल विपरीत हैं।
और इस प्रकार प्रतिदिन वही मज़दूर व्यक्तिगत रूप से देखता है कि बुर्जुआ अख़बार यहाँ तक कि बहुत ही साधारण तथ्यों को ऐसे तरीक़े से बताते हैं जो बुर्जुआ वर्ग के पक्ष एवं मज़दूर वर्ग और उसकी राजनीति के विरोध में होता है। क्या हड़ताल हुई? जहाँ तक बुर्जुआ अख़बारों का सवाल है मज़दूर हमेशा ग़लत होते हैं। क्या कोई प्रदर्शन हुआ? प्रदर्शनकारी हमेशा ग़लत होते हैं, महज़ इसलिए क्योंकि वे मज़दूर हैं जिनका दिमाग़ हमेशा गर्म रहता है, वे हिंसक होते हैं, उपद्रवी होते हैं। सरकार ने कोई क़ानून पारित किया? यह हमेशा अच्छा, उपयोगी और न्यायपूर्ण होता है, यद्यपि यह नहीं होता। और यदि कोई चुनावी, राजनीतिक अथवा प्रशासनिक संघर्ष होता है? सबसे अच्छे कार्यक्रम और उम्मीदवार हमेशा बुर्जुआ दलों के होते हैं।
और हम उन सभी तथ्यों के बारे में बात तक नहीं कर रहे हैं जिनपर बुर्जुआ अख़बार या तो चुप्पी साधे रहते हैं, अथवा मज़दूरों को गुमराह करने, भ्रमित करने या उन्हें अज्ञानी बनाये रखने के लिए उसका उपहास उड़ाते हैं, या उसे झूठा साबित करते हैं। इसके बावजूद, बुर्जुआ अख़बारों के प्रति मज़दूर की आपराधिक मौन स्वीकृति असीम है। हमें इसके खि़लाफ़ खड़ा होना होगा और मज़दूरों को वास्तविकता की सही पहचान करानी होगी। हमें बार-बार यह दोहराना होगा कि अख़बार विक्रेता के हाथों में अन्यमनस्कता से पैसे देना बुर्जुआ अख़बार को तोप के गोले देना है जिसका उपयोग वह उपयुक्त समय पर, मज़दूर वर्ग के खि़लाफ़ करेगा।
यदि मज़दूरों को इन मूलभूत सच्चाइयों से अवगत कराया गया होता तो वे उसी एकजुटता और अनुशासन के साथ बुर्जुआ प्रेस का बहिष्कार करना सीख गये होते जिससे बुर्जुआ मज़दूरों के अख़बारों, जो कि समाजवादी प्रेस है, का बहिष्कार करता है। बुर्जुआ प्रेस, जो कि आपका विरोधी है, को आर्थिक सहयोग नहीं दें। सभी बुर्जुआ अख़बारों के सदस्यता अभियान के इस दौर में हमारा नारा यही होना चाहिए। बहिष्कार करो, बहिष्कार करो, बहिष्कार करो!
मज़दूर बिगुलजुलाई 2015

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