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Saturday, July 11, 2015

लीजिये,तैयार है आपको जिबह करने के लिए हिंदुस्तानी गिलोटिन! माफ कीजियेगा।हकीकत कोई मुगल गार्डन नहीं होता,जहां आप गुले गुलबहार हो जायें।हकीकत के झटके किसी ज्वालामुखी से बह निकलने वाले लावे से भी भयंकर बहते हुए बिजली के तार हैं या फिर ऐसी सुनामी है,जिसमें तमाम लाशें लौट फिरकर आपकी गोद में जमा हो जाती हैं एकदम ताजा। हिंदुत्व के नर्क में वापसी पर हमारे आदरणीय मित्र आनंद तेलतुबंड़े ने लिखा है और हम उनसे बेहतर लिख नहीं सकते हैं।समयांतर के ताजा अंक में फिर जाति उन्मूलन के प्रसंग को झूठ के कारोबार शीर्षक से साफ किया है।अंबेडकर आर्ग में बाबासाहेब का यह आलेख भी डिजिटल उन्हींका लगाया हुआ है।अब हकीकत की जमीन प खड़े होकर जाति उन्मूलन का असलियत का जायका भी लें जरा। पलाश विश्वास

लीजिये,तैयार है आपको जिबह करने के लिए हिंदुस्तानी गिलोटिन!

माफ कीजियेगा।हकीकत कोई मुगल गार्डन नहीं होता,जहां आप गुले गुलबहार हो जायें।हकीकत के झटके किसी ज्वालामुखी से बह निकलने वाले लावे से भी भयंकर बहते हुए बिजली के तार हैं या फिर ऐसी सुनामी है,जिसमें तमाम लाशें लौट फिरकर आपकी गोद में जमा हो जाती हैं एकदम ताजा।


हिंदुत्व के नर्क में वापसी पर हमारे आदरणीय मित्र आनंद तेलतुबंड़े ने लिखा है और हम उनसे बेहतर लिख नहीं सकते हैं।समयांतर के ताजा अंक में फिर जाति उन्मूलन के प्रसंग को झूठ के कारोबार शीर्षक से साफ किया है।अंबेडकर आर्ग में बाबासाहेब का यह आलेख भी डिजिटल उन्हींका लगाया हुआ है।अब हकीकत की जमीन प खड़े होकर जाति उन्मूलन का असलियत का जायका भी लें जरा।


पलाश विश्वास

माफ कीजियेगा।हकीकत कोई मुगल गार्डन नहीं होता,जहां आप गुले गुलबहार हो जायें।हकीकत के झटके किसी ज्वालामुखी से बह निकलने वाले लावे से भी भयंकर बहते हुए बिजली के तार हैं या फिर ऐसी सुनामी है,जिसमें तमाम लाशें लौट फिरकर आपकी गोद में जमा हो जाती हैं एकदम ताजा।


हिंदुत्व के नर्क में वापसी पर हमारे आदरणीय मित्र आनंद तेलतुबंड़े ने लिखा है और हम उनसे बेहतर लिख नहीं सकते हैं।समयांतर के ताजा अंक में फिर जाति उन्मूलन के प्रसंग को झूठ के कारोबार शीर्षक से साफ किया है।अंबेडकर आर्ग में बाबासाहेब का यह आलेख भी डिजिटल उन्हींका लगाया हुआ है।अब हकीकत की जमीन प खड़े होकर जाति उन्मूलन का असलियत का जायका भी लें जरा।


पिरभी इस आलेख के साथ नत्थी तस्वीरें देखकर हमारे होश उड़ गये तो आप जितने बी संगदिल हों,इंसानियत का तनिको जज्बा आपके भीतर हों तो जरुर इस पर गौर करें कि आजादी के करीब आठ दशक के बाद जब लोकतंत्र के इस तिलिस्म में सत्ता समीकरण में सबसे अहम डा.भीमराव अंबेडकर सबसे प्रासंगिक हैं और सभी पक्षों की ओर से उन्हें हमारी भावनाओं का उदात्त मर्यादा पुरुषोत्तम चेहरा बनाने में कोई कोताही नहीं हो रही है,तो उनके जाति उन्मूलन के एजंडे का क्या हुआ।


माफ करें,वीभत्स उन तस्वीरों को जिन्हें हमने पहले भी साझा किया है,पता नहीं किस शुभ मुहूर्त पर वे आपके मुखातिब हों और आपकी यात्राभंग हो जाये,लेकिन जिस जात पांत को लेकर सारी राजनीति है और खासतौर पर बिहार के अगले चुनावों में सारा जोर उसी पर है,उसका बीभत्सतम चेहरा बेनकाब करने के अलावा हमारे पास कोई  चारा नहीं है।


हम संघ परिवार के हिंदू राष्ट्र के खिलाफ हैं।विडंबना है कि इन तस्वीरों से सबसे ज्यादा चुनावी फायदा लेकिन संघ परिवार को होना है क्योंकि बिहार में सत्ता अब जिनकी है,वे इस भयावह सामाजिक यथाऱ्थ के सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं।


जो लोग जाति अस्मिता के जरिये विचारधारा की आड़ में बाहुबलि जातियों का राजकाज चला रहे हैं यूपी बिहार में खास तौर पर,जा पांत की पहचान की राजनीति उनकी पूंजी है।


मगर इसे न भूलें कि यह जातपांत उसी हिंदुत्व नरक की लहलहाती फसल है और उसी जांत पांत की अस्मिताओं को खांचे में बांटकर बहुजनों को हिंदुत्व की पैदल सेना बनाकर जो हिंदू राष्ट्र बना है।उसके ही सिबपाहसालार और मनसबदार हैं बाहुबलि जातियों के ये ये मनसबदार।यह यूपी बिहार का जितना सच है,उतना ही तरक्कीपसंद बंगाल,क्रांतिकारी पाश के पंजाब और बाबासाहेब के गृहपरदेश महाराष्ट्र का सच है जो दाक्षिणात्य में पेरियार और नाराय़ण गुरु अय्यंकाली का भी सच है।


भयंकर नस्लभेदी सच है यह सलवा जुड़ुम और आफसा का भी।


यह सच अखंड हिंदू राष्ट्र का वीभत्स नक्शा है.जिसकी सरजमीं पर हम सांसे तो लेते हैं क्लोन रोबोट होने के बावजूद,लेकिन उसका सामना करते नहीं है।उदात्त वैदिकी अवधारणाओं,मिथकों और गाथाओं में सच गायब है।


बिहार के मुंगेर ने मूसलाधार बरसात में मलबे के तरह बह निसले इस सच को हमारे मुखातिब कर दिया है।हम अनंत डूब के बीचों बीच हैं और पानी सर के ऊपर है।या हमारे पांवों तले की जमीन में गढ़े हुए हैं हजारों परमाणु बम जो फटने वाले हैं और कहीं कोई रेड अलर्ट नहीं है जैसे किसी महाभूकंप या सुनामी या बाढ़ या दुष्काल या भुखमरी या मंदी महामंदी के बारे में कोई मौसमवाली भविष्यवाणी नहीं है।


हम किस देश में रह रहे हैं आखिर जिसके लिए नवारुणदा मरने से बहुत पहले लिख गये यह मृत्यु उपत्यका मेरा देश नहीं है और जिसकी फिजां केबारे में पाश का कहना है कि सबसे खतरनाक है ख्वाबों का मर जाना।


कल ही हमने वे तस्वीरें साझा की थीं।तमाम लोग पढ़ते हैं।शेयर तो कुछ लोगों ने किया ही होगा।तमाम महामहिम हमारे सोशल मीडिया मित्र हैं,जिनमें पक्ष विपक्ष के महाबिलि भी कम नहीं है।फिर कश्मीर या मध्यभारत पर लिखते ही जब हमारे ीमेल आईडी और ब्लाग को ब्लाक कर देने का सूचनातंत्र इतना चाकचौबंद है तो हम कैसे मान लें कि राजनीति और सत्ता के गलियारे में ये तस्वीरें न पहुंची हों।


पिरभी अजब गजब सन्नाटा है।जनपक्षधरता जिनका कारोबार है और अंबेडकरी एटीएम पर जिनका कब्जा है,ऐसे लोग भी इसहादसे से आंखें चुरा रहे हैं इसतरह जैसे कि सुहागरात से पहले किसी दुल्हन का मुखड़ा घुंघट के भीतर बेनकाब हो।



हमने छात्र जीवन में कोर्स में चार्ल्स डिकेंस के मशहूर उपन्यास दि टेल आफ टू सिटीज बीए प्रीविएस में अंग्रेजी साहित्य के पाठ्यक्रम के तहत पढ़ा है।सड़कों पर फैले खून के सैलाब के बीच गिलोचिन के जरिये समंतों के कुनबों समेत सफाये की इस क्रांति से हमारे रोंगटे खड़े हो गये तो रौ में विक्टर ह्यूगो के ला मिजराबेल्स के चारों खंड अंग्रेजी अनुवाद भी पढ़ लिये।यह उपन्यास फ्रांसीसी क्रांति का सबसे प्रामाणिक दस्तावेज है।न पढ़ा हो तो तुरंत पढ़ लें।


गिलोटिन के बारे में तबसे लेकर एक धारणा भर थी काव्य बिंब की तरह।क्योंकि इतिहास में फिर मनुष्य के वध के लिए उस नायाब यंत्रे के उपयोग का किस्सा हमने कहीं पढ़ा नहीं है।आपने पढ़ा हो तो बताइये।


बहरहाल बिहार में इसरो की महान उपलब्धियों को लजाते हुए हमारे बिहारी सवर्ण भाइयों ने हिंदुस्तानी गिलोटिन ईजाद करके उसे आजमा भी लिया है।


लीजिये,तैयार है आपको जिबह करने के लिए हिंदुस्तानी गिलोटिन।


जिला लखीसराय के गाँव खर्रा के मनु तांती को उसके गाँव के उच्च जाति के मालिकों ने चार दिन की मजूरी मांगने पर चारा काटने की मशीन में डाल दिया ....


इस पर लखनऊ की मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता ने सवाल किये हैंः


क्या इसी भारत को डिजिटल इंडिया बनाना चाहते हैं …?


क्या सचमुच जातिवाद समाप्त हो गया है …?


मेरे पास फिल वक्त इन सवालों के जवाब नहीं हैं।आपके पास हों तो जरुर हमें भी बता दें।


नूतन जी ने लिखा हैः

हममें से जो लोग बार बार ये कह रहे हैं कि जातिवाद का सफाया हो चुका है.. उनके लिए एक बुरी खबर ...

जिला लखीसराय के गाँव खर्रा के मनु तांती को उसके गाँव के उच्च जाति के मालिकों ने चार दिन की मजूरी मांगने पर चारा काटने की मशीन में डाल दिया .... क्या इसी भारत को डिजिटल इंडिया बनाना चाहते हैं ... क्या सचमुच जातिवाद समाप्त हो गया है ... जिस देश में मजदूरी मांगने पर ये हश्र होता है वहां आरक्षण पाने के लिए उस शिक्षा व्यवस्था में घुसना और खुद को बनाये रखना कितना कष्टकारी है इसे समझने के लिए जातिवाद के कीड़े को दिमाग से निकालना होगा ....हम किस समय में रह रहे हैं .... इंसान को आज भी इंसान मानना बहुत मुश्किल है ....वो भी दलित, आदिवासी, महिलाएं और मुसलमान हो तो सच में बहुत मुश्किल है ....

नोट : ये सूचना दोस्त Vinita Sehgal की वाल से ली गई है ....

हमने पहले ही  इस नारकीय हत्याकांड की तस्वीरें अपने ब्लागों में लगा दिये हैं कि आप हिंदुत्व के इस जन्नत के मुखातिब हों। हमने तब टिप्पणी की थीः

WARNIG:GRAPHIC PHOTO


Sorry to post these Horrible Photos.Be brave enough to face the Indian reality of Class Caste hegemony role of genocide culure,the BRUTE Apartheid.I am afraid that I have to shock you if you happen to be human enough!However biometric robotic clones have no mind or heart as most of us remain headless chicken as they describe:KABANDH!




C.l. Chumber shared Raghbendra Chaudhary's post.

5 hrs · Edited ·

Where are the fundamental rights and constitution of India ? Where are the Gandhian , Ambedkarite , Socialist , Communists of all directions , Akali , Dravidian , Bahujan and Sarvjan political parties to punish those who did cut an alive labourer into pieces when he asked his four days due wages ?

We must slap on the faces of such sociopolitical and religious leaders who talk about the God and Constitution but they keep mum on such murders and other heinous crimes !

Shame on the Indian President , Vice President , P.M. , Indian cabinet and the Bihar state govt. !

Raghbendra Chaudhary added 4 new photos.

साथियो

जाति व्यवस्था का क्रूर परिणाम है जो मन्नू तांती के साथ घटित हुई है. अपने देश में दलितों की दशा एवं दिशा का यह जीता जागता प्रमाण आपके सामने है.

यह घटना बिहार राज्य के जिला लक्खीसराय गांव खररा की है। स्व. मन्नू तांती के साथ यह घटी है. केवल अपने पिछले चार दिनों की मजदूरी मांगने के कारण मन्नू तांती को गेहूं निकालने वाली थ्रेसर में जिन्दा पीस दिया गया. इस जघन्य हत्या का अंजाम उसके गांव के दबंग लोगों दिया.




बंगाली जन्मजात होने की वजह से आधा बिहारी भी हूं।पूरे देश को संबोधित करने के लिए अंग्रेजी में भी लिख लेता हूं।दक्षिण भारत से संवाद भी अंग्रेजी में कर लेता हूं।बाकी दुनिया से भी तार इस अंग्रेजी माध्यम से जुड़े हुए हैं।बंगाल में भी बांग्ला में लिखा हमारा बंगाली भद्रलोक पढ़ते नहीं है,वह तो बांग्लादेश के म्लेच्छों और अछूत शरणार्तियों से संवाद का सिलसिला है।


असल में हमारी मातृभाषा जितनी बांग्ला है उतनी ही हिंदी है।जीआईसी नैनीताल में धर दबोचते ही हमारे गुरुजी ताराचंद्र त्रिपाठी ने कह दिया था।गुरुजी का कहा झूठ न हो और वैसे भी जनमा यूपी उत्तराकंड में हूं,कोशिश करता हूं कि हर जरुरी मसले पर हिंदी में संवाद जरुर करुं।


लेकिन शायद ही कम लोगों को मालूम होगा कि कुमांयूनी और गढ़वाली की तरह भोजपुरी और मैथिली से भी हमारा नाता उसीतरह का है जैसे अवधी और ब्रजभाषा से।क्योंकि तमाम लोक हम वहीं से वसूलते हैं।हमारी समूची विरासत वहीं है।


छत्तीसगढ़ी,मालवी और राजस्थानी के बी अपने अपने ठाठ हैं।गुजराती का तड़का अलग है तो मरहट्टी के बिना असली भारत को समझा ही नहीं जा सकता।

शुध हो नहो,जब मजा खूब आता है या मिजाज तनिको रंगीन हो और दिलोदिमाग में भैंसोलाजी की बहार हो तो हमारी उंगलियां अपने आप भोजपुरी बोलने लगती है।


इसकी खास वजह बचपन से अबतक देखी हिंदी फिल्में और खासतौर पर हमारे प्रिय कलाकार दिलीप कुमार हैं।वे पक्का पठान होकर गंगा जमुना में जो धड़ाधड़ भोजपुरी बोले हैं और उनकी जैसी संगत कयामतो बैंजतीमाला तमिलकन्या ने की है,उसके बाद लोकरंग के नजदीक होने का जरिया भोजपुरी के अलावा और क्या हो सकता है,हम जाने न हैं।त्रिलोचन शास्त्री जी ने अवधी का बी समां बांधा है,वह हम साधै न सकै हैं।और कबीर दास तो हम हो ही न सकै हैं।गरीब गुरबो की भोजपुरी हमारी मौज है।


ऐसा भी नहीं है कि यह को कौशल है लिखने का।हम कला कौशल से हजारों मील दूर हैं और अपने तमाम लेखक मित्रों और कलाकारों से एकदम अलहदा है।


बचपन में जो पूरबिये खेत मजदूर जावत रहे तराई,उनसे हमारा भौत दोस्ताना रहा है और तराई के भोजपुर भाषी गांवों में हम उनका अपना बच्चा रहे हैं।


बंगाली मातृभाषा की वजह से हूं और उत्तराखंडी जनम और पढ़ाई लिखाी की वजह से।वैसे मेरा ननिहाल उड़ीसा में है और उड़िया अभीतक लिपि की वजह से सीख नहीं सका हूं।समझ भले लेता हूं।उसीतरह लिपि की वजह से असमिया हमारे लिए अपभ्रंश बांग्ला है जैस मरहट्टी तत्सम हिंदी।


गायपट्टी के लिए प्रगतिशील बिरादरी गरियाये चाहे कितना ही,कि ससुरै बुरबको हैं,हमें शर्म लेकिन आती नहीं है कि हम भी अपने गरीब गुरबे स्वजनों की तरह जिंदगी भर बुरबक ही रहे और अब चालाक बनकर कोई मुनाफा वसूली नहीं करनी है।


कुल किस्सा का मतलब यह कि मध्यभारत और पश्चिम भारत से लेकर समुची हिंदी गायपट्टी का अच्छा बुरा जो है,उन्हीं में हमारी जड़ें है।जात पांत की राजनीति का हमसे मुकाबला फिर वही बचपन से हैं।अंबेडकर को पढ़ने से भी पहले।


हमने अविभाजित बिहार के कोयलांचल के कोयला खानों के हादसों और भूमिगत आग से पत्रकारिता के सबक सीखे हैं तो मध्य बिहार के हलचल से भी जुड़ा रहा हूं उसी तरह से जैसे उत्तराखंड,झारखंड और छत्तीसगढ़ के आंदोलनों से।


बिहार की राजनीति में जांत पांत के ताने बाने से सामाजिक बदलाव के बहुत पहले से हमारा परिचय रहा है और धनबाद से ही जातियों के महाबिलियों से हमारी मुठभेड़ होती रही है जैसे कोयला माफिया से।


अब उनकी बड़ी मेहरबानी रही है कि उनने हमें कभी निशाना नहीं बनाया और न हमारे खिलाफ फतवे जारी किये।


बिहार के अनुभवों के मद्देनजर लखीसराय की यह वारदात मध्यबिहार के नरसंहारों से ज्यादा भयानक हमें लग रही है और श्रमसुधारों के बाद मेहनतकशों के लिए तैयार हिंदुत्व की इन गिलोटिन नरसंहार मशीनों में पिसने वाली इंसानियत को मैं लखीसराय के इस चारा मशीन में पिसते हुए देख रहा हूं।

अस्मिताओं की पूंजी से चल रही कारपोरेट रंग बिरंगी केसरिया राजनीति और फासिज्म के राजकाज में यह भविष्य का खुला दस्तावेज है।


आप भी पढ़ ले तो बेहतर।


बहरहाल, बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर के जाति उन्मूलन के एजंडा से खास कोई चीज हमारे लिए नहीं है।आप बी हमारे साथ हों तो भला हो आपका,न भी हों तो हिंदुत्व के नर्क में जितना भला हो सके हैं,उतना भला कमसकम आपका हो जाये।




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