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Thursday, March 3, 2016

यह सरकार की विफलता है कि आज भी देश के करोड़ों लोगों के पास घर नहीं है घर के नाम पर दस बाई दस फुट के झोपड़ी में पूरा परिवार रहने के लिए मजबूर हैं करोड़ों लोग पीने के पानी के लिए तीन तीन किलोमीटर पैदल चलते हैं करोड़ों लोग दो वख्त भर पेट खाना नहीं खाते रेडियो पर उन् लोगों का मज़ाक बनाना कि इनकी सोच में ही गडबड है इसलिए ये लोग शौचालय नहीं बनाते एक राजनैतिक चाल है


सोच बदलो शौचालय बनवाओ 
आप रोज़ यह विज्ञापन सुनते होंगे 
सरकार करोड़ों रुपया इस विज्ञापन पर खर्च करती है 
लेकिन क्या आपने कभी इस विज्ञापन के पीछे की राजनीति को समझा है ?
यह विज्ञापन आपके दिमाग में यह बात रोज़ रोज़ बिठाता है 
कि गरीब लोग इसलिए सड़क पर या रेल लाइनों पर या खुले में शौच करते हैं क्योंकि उनकी सोच गलत है 
और गरीब असल में गंदे होते हैं 
इस विज्ञापन के कारण आप कभी इस समस्या पर सही तरह से सोच ही नहीं पाते 
आपको कभी नहीं बताया जाएगा 
कि गरीब इसलिए खुले में शौच करते हैं क्योंकि उनके पास या तो शौचालय के लिए ज़मीन नहीं है 
या शौचालय बनाने के लिए पैसा नहीं है 
या फिर पानी नहीं है 
किसी भी गरीब को कोई मज़ा नहीं आता कि वह घर में बने हुए शौचालय की बजाय रेल की पटरी पर या नाले के किनारे शौच करे

यह सरकार की विफलता है कि आज भी देश के करोड़ों लोगों के पास घर नहीं है 
घर के नाम पर दस बाई दस फुट के झोपड़ी में पूरा परिवार रहने के लिए मजबूर हैं 
करोड़ों लोग पीने के पानी के लिए तीन तीन किलोमीटर पैदल चलते हैं 
करोड़ों लोग दो वख्त भर पेट खाना नहीं खाते 
रेडियो पर उन् लोगों का मज़ाक बनाना कि इनकी सोच में ही गडबड है 
इसलिए ये लोग शौचालय नहीं बनाते 
एक राजनैतिक चाल है

सरकार अपनी विफलता का टोकरा 
गरीब के माथे पर पटक देती है 
और आप बिना सोचे समझे इस बात को स्वीकार कर लेते हैं कि 
हाँ ये गरीब तो होते ही गंदे हैं 
इनकी सोच ही खराब है 
और विद्या बालन ठीक ही कहती है


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