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Saturday, December 10, 2016

समझ लीजिये कि आपका ईश्वर कितना भारी चार सौ बीस है! अगले छह महीने तो क्या, भविष्य में कभी नकद लेन देन की संभावना कोई नहीं है ! यह नरसंहार अर्थव्यवस्था पर नस्ली कारपरोरेट एकाधिकार की साजिश है। सत्ता वर्ग डिजिटल है तो डिजिटल इंडिया में बढ़त भी उन्हीं की है और मुनाफा वसूली के साथ साथ मुक्तबाजार का सारा कारोबार उन्हीं के दखल में है। 160 बैंक पीएसपी बनेंगे डिजिटल तो सात लाख करोड़ से ज्यादा क

समझ लीजिये कि आपका ईश्वर कितना भारी चार सौ बीस है!



अगले छह महीने तो क्या, भविष्य में कभी नकद लेन देन की संभावना कोई नहीं है !

यह नरसंहार अर्थव्यवस्था पर नस्ली कारपरोरेट एकाधिकार की साजिश है।

सत्ता वर्ग डिजिटल है तो डिजिटल इंडिया में बढ़त भी उन्हीं की है और मुनाफा वसूली के साथ साथ मुक्तबाजार का सारा कारोबार उन्हीं के दखल में है।

160 बैंक पीएसपी बनेंगे डिजिटल तो सात लाख करोड़ से ज्यादा करेंसी चलन में कतई नहीं होंगी ,डिजिटल इंडिया के रणनीतिकारों का एक्शन प्लान यही है और इसी वजह से बाकायदा सुनियोजित तरीके से बैंकों को दिवालिया बना दिया गया है।

नोट वापस ले लिये गये हैं लेकिन नोट वापस करने की कोई योजना नहीं है।न नोट जरुरत के मुताबिक छापे जा रहे हैं।न कभी फिर छापे जाएंगे।

पलाश विश्वास

तीन दिन बैंक बंद होने पर बहुत शोर होने लगा है।बैंक लगातार खुले हों तो भी नकदी मिलने वाली नहीं है।जैसे एटीएम बंजर हैं वैसे बैंक भी बंजर बना दिये गये हैं।बैंकों के अफसर और कर्मचारी एक बहुत बड़ी साजिश के शिकार हो रहे हैं।उनका इस्तेमाल बैंकों को दिवालिया बनाकर डिजिटल बहाने सारे लेनदेन के निजीकरण कारपोरेट वर्चस्व के लिए हो रहा है।यह नस्ली नरसंहार है।

अगले मार्च तक 160 बैंकों के डीजीटल लेनदेन के आधारकेंद्र पीएसपी बनाये जाने की तैयारी है और सुप्रीम कोर्ट की यह खुली अवमानना है कि सरकार 10 से 15 दिनों में नकदी सुलभ करने कोई इंतजाम करने जा रही है।यह सरासर धोखाधड़ी है।

आम जनता के हाथ में नकदी कतई न रहे,पूरी कवायद इसीके लिए है ताकि गुलामी मुकम्मल स्थाई बंदोबस्त हो और राज मनुस्मृति का।मुकम्मल हिंदू राष्ट्र।

ताकि खेती और कारोबार,उत्पादन और सेवाओं,उपभोक्ता वस्तुओं के बाजार पर पूरीतरह कारपोरेट निंयत्रण हो।

सारे नागरिक चूहों में तब्दील हैं और हैमलिन का वह जादूगर ईश्वर है जो नागरिक चूहों को इस देश की तमाम पवित्र नदियों में उनकी आस्था के मुताबिक विसर्जित करने जा रहा है।

सात खून माफ है। सारे नरसंहार माफ हैं। वह ईश्वर है।

पेटीएम जिओ आदि नकदी लेनदेन का निजी बंदोबस्त बैंकों के जरिये बैंकिंग को खत्म करने के लिए हो रहा है,यह सीधी सी बात अफसरों और कर्मचारियों की समझ में नहीं आ रही है तो राजनीतिक समीकरण की भाषा में अभ्यस्त राजनीति को क्या समझ में आने वाली है,जिसके लिए मौका के मुताबिक मुद्दे रोज बदल रहे हैं और वे मौसम मुर्गा के माफिक झूठे मौसम की बांग लगा रहे हैं।

भारत को अमेरिका ने अपना रणनीतिक पार्टनर कानून बना लिया है और यह मामला नजरअंदाज हो गया है।निजीकरण विनिवेश और एकाधिकार के लिए वाया नोटबंदी जो डिजिटल चक्रव्यूह तैयार किया है नरसंहार विशेषज्ञों ने,उसे सिर्फ संसद में शोर मचाकर बदलने की किसी खुशफहमी में वे जाहिर है कि कतई नहीं है।

वे जानबूझकर नौटंकी कर रहे हैं और कालाधन है तो सबसे ज्यादा इन्ही रंगबिरंगी पार्टियों के सिपाहसालारों का है और पकड़े जाने वाले हर नये पुराने नोट के साथ साफ राजनीतिक पहचान वैसे ही जुड़ी है जैसे आजाद भारत में हुए हर सौदे,घोटाले,भ्रष्टाचार के साथ सत्ता और राजनीति नत्थी  हैं।

राजनेताओं की जान आफत में है और वे अपनी अपनी जान बचा रहे हैं।

पर्दे की आड़ में नरसंहार के सौदे तय हो रहे हैं।

नकदी का संकट कृत्तिम है ताकि अर्थव्यवस्था को कैशलैस बनाया जा सके।

यह डिजिटल इंडिया का फंडा है।इसी वजह से बाजार में दशकों से चलन में रहे तमाम हाईवैल्यु नोट को रद्द करके आम जनता से क्रयशक्ति छीन ली गयी है और इस नोटबंदी कवायद का कालाधन से कोई मतलब नहीं है।

हम आगाह करना चाहते हैं कि सारी कवायद संसदीय सर्वदलीय सहमति से हो रही है।

सात लाख करोड़ से ज्यादा करेंसी चलन में कतई नहीं होंगी ,डिजिटल इंडिया के रणनीतिकारों का एक्शन प्लान यही है और इसी वजह से बाकायदा सुनियोजित तरीके से बैंकों को दिवालिया बना दिया गया है।नोट वापस ले लिये गये हैं लेकिन नोट वापस करने की कोई योजना नहीं है।

न नोट जरुरत के मुताबिक छापे जा रहे हैं।न छापे जाएंगे।

सत्ता वर्ग डिजिटल है तो डिजिटल इंडिया में बढ़त भी उन्हीं की है और मुनाफा वसूली के साथ साथ मुक्तबाजार का सारा कारोबार उन्हीं के दखल में है।

यह बेलगाम नरसंहार अर्थव्यवस्था पर नस्ली एकाधिकार की साजिश है।

यह सारा खेल निराधार आधार के बूते किया जा रहा है और नोटबंदी का विरोध करने वाली राजनीति ने आधार योजना का किसी भी स्तर पर विरोध नहीं किया है।सारा केवाईसी आधार के जरिये है और नई तकनीक का इस्तेमाल भी इसी आधार मार्फत होना है।जिसके तहत बैंको को भी डिजिटल कवायद में जबरन शामिल किया जा रहा है और बैंकों के जरिये पेटीएम कारोबार का एकाधिकार वर्चस्व स्थापित हो रहा है।लेनदेन डिजिटल है लेकिन इस लेनदेन की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है।

नोटबंदी से पहले जो एटीेएम डेबिट क्रेडिट कार्ड के पासवर्ड चुराये गये,उसका गेटवे आधार नंबर है और अब सारा कारोबार आधार नंबर के मार्फत करने का मतलब बेहद खतरनाक है।इस डिजिटल अर्थतंत्र में रंगभेदी वर्चस्व कायम करने का स्थाई बंदोबस्त है और इसे लागू करने के लिए ही कालाधन निकालने का लक्ष्य बताया गया है जो दरअसल कालाधन पर सत्ता वर्ग का एकाधिकार का चाकचौबंद इंतजाम है।

हर लेनदेन के साथ आधार नत्थी हो जाने का मतलब हर लेनदेन के साथ नागरिकों के बारे में सारी जानकारी लीक और हैक होना है और उस जानकारी को कौन कैसे इस्तेमाल करेगा,यह हम नहीं जानते।

मसलन जनधन योजना के तहत जो खाते करोडो़ं के तादाद में खोले गये,सिर्फ डाक मार्फत चेकबुक न पहुंचने के काऱण उन खातों का पासबुक और चेकबुक बैंक कर्मचारियों के दखल में हैं,जिनका नोटबंदी संकट में कालाधन सफेद बनाने के लिए इस्तेमाल हो रहा है।

तो समझ लीजिये कि आधार जानकारियां सार्वजनिक हो जाने पर नागरिकों की जानमाल गोपनीयता की क्या गारंटी होगी।

इसे खेल की तकनीक,योजना और आधार आथेंसिटी का मामला राजनेताओं को कितना समझ में आ रहा है ,कहना मुश्किल है।लेकिन नोटबंदी के खिलाफ शोरशराबे से कुछ हासिल नहीं होना है,यह तय है।

अगले छह महीने तो क्या भविष्य में कभी नकद लेन देन की संभावना कोई नहीं है तो डिजिटल दुनिया के बाहर के लोगों के लिए क्रयशक्ति शून्य है और इसका सीधा मतलब यह है कि रोजमर्रे की जिंदगी में उन्हें दाने दाने को मोहताज होना पड़ेगा।

यह खुल्लमखुल्ला नरसंहार है और अंजाम भुखमरी है।सत्तावर्ग को भूख नहीं लगती।

बहरहाल नोटबंदी के बाद सरकार जिस तरह डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा दे रही है, उसका असर दिखने भी लगा है। पिछले 1 महीने में ही डिजिटल पेमेंट में कई गुना का उछाल आया है और इसका सबसे ज्यादा फायदा ई-वॉलेट कंपनियों को हो रहा है।

गौरतलब है कि पेटीेएम और जिओ ने खुलकर प्रधानमंत्री की छवि अपना कारोबार बढ़ाने के लिए किया है और उनके माडलिंग से इन कंपनियों के पौं बारह हैं।

जाहिर है कि नोटबंदी के बाद एटीएम और बैंकों के बाहर की कतारें आम हो चली हैं। बैंकों और एटीएम से लाशें निकल रही है।नकदी नहीं निकलरही हैं। इसका सीधा फायदा पेटीएम को हो रहा है क्योंकि लोग डिजिटिल पेमेंट पर जोर दे रहे हैं।

गौरतलब है कि नोटबंदी के बाद 1 महीने में डिजिटल पेमेंट 6 गुना तक बढ़ गया है।कालाधन पर खामोशी बरत कर देश के सबसे बड़े कारपोरेट वकील ने बाहैसियत संघी वित्तमंत्री कालाधन पर जो बहुप्रचारित बयान जारी किया है उसका कोई संबंध काला धन से नहीं है।न उन्होंने नोटबंदी  मुहिम में निकल कालाधन का कोई ब्यौरा दिया है।उनने ग्यारह सूत्री सरकारी निर्णय की जो जानकारी दी है ,उसका एजडा हिंदुत्व का नस्ली नरसंहार यानी डिजिटल डिवाइड है जिसके मुताबिक डिजिटल बनाने के लिए अपनी खासमखास कंपनियों के कारोबार के लिए बढा़वा देना है।

इसी के तहत सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस दौरान रुपे कार्ड से लेनदेन 500 फीसदी से ज्यादा बढ़ा है। वहीं ई-वॉलेट से पेमेंट भी करीब 3 गुना हो गया है। इस दौरान यूपीआई से 15 करोड़ रुपये की लेनदेन हुआ जो 1 महीने पहले 2 करोड़ रुपये से भी कम था। वहीं यूएसएसडी से लेनदेन भी तेजी से बढ़ रहा है। प्वाइंट ऑफ सेल यानी पीओएस से शॉपिंग के लिए पेमेंट में भी 40 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है। जानकारों का मानना है कि आगे डिजिटल पेमेंट की रफ्तार और बढ़ेगी।

हालांकि सबी जानकार डिजिटल पेमेंट में सुरक्षा के खतरों को बहुत बड़ी बाधा मानते हैं। लेकिन सरकार और कंपनियों को आम जनता की जानमाल की कोई परवाह नहीं है और उनका का कहना है कि डिजिटल पेमेंट पूरी तरह सुरक्षित हैं। अगर थोड़े बहुत खतरे हैं तो उन्हें सुलझा लिया जाएगा।उन थोड़े बहुत खतरे से आगाह भी जनता को आगाह नहीं किया जा रहा है तो समझ लीजिये कि आपका ईश्वर कितना बारी चार सौ बीस है।

नोटबंदी के बाद सरकार भी डिजिटल पेमेंट को जमकर बढ़ावा दे रही है और अगर ज्यादा से ज्यादा लोग इसे अपनाते हैं तो इकोनॉमी को फायदा होगा।



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