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Wednesday, May 31, 2017

#AyodhyaBack#Beefgate#Military State हे राम!यह समय सैन्य राष्ट्र में कारपोरेट नरबलि का समय है और वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति का हिंदुत्व राष्ट्रवाद हमारे हिंदू मानस के कारपोरेट उपभोक्ता मन और मानस में इंसानियत का कोई अहसास पैदा ही नहीं होने दे रहा है।यही हमारी संसदीय राजनीति भी है।राम !राम ! पलाश विश्वास

#AyodhyaBack#Beefgate#MilitaryState

हे राम!यह समय सैन्य राष्ट्र में कारपोरेट नरबलि का समय है और वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति का हिंदुत्व राष्ट्रवाद हमारे हिंदू मानस के कारपोरेट उपभोक्ता मन और मानस में इंसानियत का कोई अहसास पैदा ही नहीं होने दे रहा है।यही हमारी संसदीय राजनीति भी है।राम !राम !

पलाश विश्वास

हम इसे कतई देख नहीं पा रहे हैं कि भारत की आजादी के लिए लड़ने वाले और अपनी जान कुर्बान करने वाले हमारे पूर्वजों के सपनों का भारत कैसे ब्रिटिश हुकूमत के औपनिवेशिक दमन उत्पीड़न के मुकाबले समता और न्याय के खिलाफ,नागरिक मानवाधिकारों के खिलाफ,मनुष्य और प्रकृति के खिलाफ होता जा रहा है।

भारतीय आध्यात्म मानवतावाद को ही धर्म मानता रहा है,जिसमें ज्ञान की खोज को ही मोक्षा का रास्ता माना जाता रहा है और सत्य और अहिंसा के तहत ज्ञान का वहीं खोज भारत की जमीन पर रचे बसे तमाम धर्मों,संप्रदायों और समुदायों का आध्यात्म रहा है,जिसे हम बहुलता और विविधता की संस्कृति कहते हैं।हमारा राष्ट्रवाद इस भारतीय संस्कृति और भारतीयता के इस धर्म,दर्शन और आध्यात्म के भी खिलाफ है।

मुक्तबाजारी समाज में मनुष्यता और प्रकृति की परवाह किसी को नहीं है इसलिए नरसंहार संस्कृति के राजकाज बन जाने और प्राकृतिक संसाधनों की खुली लूट के सैन्य राष्ट्र से हमारे विवेक में कोई कचोट पैदा नहीं होती।

तकनीक ने बाजार का अनंत विस्तार कर दिया है और क्रयक्षमता के वर्चस्व की तकनीकों ने ज्ञान की खोज और भारतीय दर्शन और आध्यात्म के मनुष्यताबोध को सिरे से खत्म कर दिया है।हम हिंसा,दमन,उत्पीड़न,अन्याय,असमता और नरसंहार की कारपोरेट व्यवस्था को ही विकास और सभ्यता मानते हैं।

ज्ञान और ज्ञान की खोज हमारे लिए बेमतलब हैं और इसी वजह से शिक्षा सिर्फ बाजार और क्रयक्षमता के लिए नालेज इकोनामी का तकनीकी ऐप है।

गाय और राम के नाम अंध राष्ट्रवाद की बुनियाद यही है।

बाबरी विध्वंस का जश्न नये सिरे से शुरु हो गया है।

यूपी के किसी मुख्यमंत्री ने 2002 के बाद पहलीबार अयोध्या पहुंचकर कारसेवा का नये सिरे से शुभारंभ अस्थायी राममंदिर में रामलला के दर्शन और पूजन से शुरु कर दिया है।अयोध्या में मुक्यमंत्री का कारसेवा नोटबंदी का चरमोत्कर्ष है ,जिसके मार्फत उनका राज्याभिषेक हो गया।

गौरतलब है कि यह कारसेवा  बाबरी विध्वंस मामले में लौहपुरुष रामरथी लालकृष्ण आडवाणी,मुरलीमनोहर जोशी, उमाभारती,विनय कटियार समेत तमाम अभियुक्तों के खिलाफ चार्जशीट तैयार हो जाने के तुरंत बाद शुरु हो गयी है।

अभी गोहत्या प्रतिबंध के तहत धार्मिक ध्रूवीकरण का खेल पूरे शबाब पर है और विकास,सुनहले दिन,मेकिंग इन इंडिया,डिजिटल इंडिया,स्मार्ट बुलेट आधार इंडिया के सारे के सारे कार्यक्रम फिर एकीकृत रामजन्मभूमि आंदोलन में तब्दील है।

राजकाज और अर्थव्यवस्था अब नये सिरे से  हिंदुत्व की राजनीति के राजधर्म निष्णात है।

गायों की हत्या रोकने के लिए दलितों, मुसलमानों, पिछड़ों और सिखों,स्त्रियों और बच्चों तक की हत्या जारी है।

नागरिक और मानवाधिकार गाय के अधिकार में समाहित है और पूरा देश गाय का देश बन गया है जहां मनुष्यों की बलि गायों की सेहत और सुरक्षा के लिए दी जा रही है।

तो दूसरी ओर,आर्यावर्त के इस हिंदुत्ववादी वर्चस्व के खिलाफ दक्षिण भारत में तेजी से द्रविड़नाडु की मांग उठने लगी है जिसे रजनीकांत के भाजपा में शामिल होने या अलग दल बना लेने के गपशप में नजरअंदाज किया जा रहा है।

मध्य भारत और पूर्वोत्तर भारत में गृहयुद्ध के हालात बने हुए हैं और आदिवासी भूगोल से लेकर दलित अस्मिता  के नये राष्ट्र हिंदू राष्ट्र के खिलाफ विद्रोह पर उतारु हैं।

इसी के मध्य कश्मीर की जनता के खिलाफ भारतीय सेनाध्यक्ष ने औपचारिक युद्ध घोषणा कर दी है।पहले सैन्य अधिकारी को अपनी जीप के समाने किसी मनुष्य को बांधकर उपदर्वियो से निबटने के लिए पुरस्कृत किया गया और उनके करतब पर सारे राष्ट्रभक्त नागिरक बाग बाग हो गये।

फिर भारत के हिंदू राष्ट्र के सेनाध्यक्ष ने साफ साफ शब्दो में कह दिया कि सेना कश्मीर में कश्मीर समस्या के समाधान के लिए तैनात नहीं है बल्कि वे राष्ट्रद्रोही बागी जनता के दमन के लिए काम कर रही है।

गौरतलब है कि मीडिया के मुताबिक कश्मीर में एक शख्स को जीप पर बांधने वाले मेजर नितिन गोगोई का सेना प्रमुख बिपिन रावत ने समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि घाटी में भारतीय सेना को गंदे खेल का सामना करना पड़ रहा है और इससे अलग तरीके से ही निपटा जा सकता है। पीटीआई से बातचीत में जनरल रावत ने कहा कि मेजर लीतुल गोगोई को सम्मानित करने का मकसद युवा अफसरों का आत्मबल बढ़ाना था। उन्होंने कहा कि इस मामले में कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी चल रही है, लेकिन आतंकवाद प्रभावित राज्यों में मुश्किल हालात में काम कर रही सेना का मनोबल बढ़ाना जरूरी है। उन्होंने सख्त लहजे में कहा कि 'कश्मीर में चल रहा प्रॉक्सी वॉर बेहद निचले स्तर का है। ऐसे में सेना को भी बचाव के नए-नए तरीके खोजने पड़ेंगे।' जनरल रावत ने कहा, 'जब सैनिकों पर लोग पत्थर फेंकते हैं, पेट्रोल बम फेंकते हैं, उस वक्त क्या मैं सैनिकों को यह कहूं कि आप चुपचाप सहते रहो और मारे जाओ। मैं तुम्हारे शवों को तिरंगे में लपेट कर इज्जत के साथ तुम्हारे घर भेज दूंगा? सेना के जवानों के मनोबल को ऊंचा रखना मेरी जिम्मेदारी है।

सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत का कहना है कि अगर सामने खड़ी भीड़ गोलियां चला रही होती तो सेना के लिए मुकाबले का फैसला आसान हो जाता।सलवा जुड़ुम और अल्पसंख्यकों के देशभर में चल रहे फर्जी मुठभेड़ का यही फार्मूला है।सेनाध्यक्ष के कहने का साफ मतलब है कि वे इतंजार कर रहे हैं कि जनता सेना पर गोली चलाये तो सेना इसका जबाव सैन्य तौर तरीके से दे देगी।

लोकतंत्र में एकता और अखंडता जैसे संवेदनशील मुद्दों को सुलझाने की यह रघुकुलरीति भक्तों के लिए जश्न का मौका है।

सेनाध्यक्ष के इस युद्ध घोषणा जैसे मंतव्य से कश्मीर समस्या कितनी सुलझेगी और उससे भी बड़ा सवाल है कि भारतीय सैन्य राष्ट्र को कश्मीर समस्या या देश में कहीं भी जनांदोलन या जनविद्रोह जैसी चुनौतियों से निबटने के इस तरीके का सभ्यता और मनुष्यता,लोकतंत्र और राष्ट्र की सुरक्षा से क्या संबंध है।

भारतीय राजनीति, भारतीय समाज में गोहत्या निषेध के रामभक्त समय में इस पर किसी संवाद या विमर्श की कई गुंजाइश भी शायद नहीं है।

इस सैन्य वक्तव्य के क्या राजनीतिक असर होगें और उसके सैन्य परिणाम कितने भयंकर होंगे ,इस पर बी बोलेने लिखने की शायद कोई इजाजत नहीं है।

कश्मीर शब्द का उच्चारण ही जैसे राष्ट्रद्रोह है। इस मुद्दे पर सेना प्रधान बोल सकते हैं,आम नागरिक अपनी जुबान बंद रखें तो बेहतर।

यह सैन्य राष्ट्र का निर्माण ही हिंदुत्व का चरमोत्कर्ष है और इसराष्ट्र के लिए कश्मीर ही एकमात्र संकट नहीं है।सिर्फ दलित,आदिवासी,पिछड़े,अनार्य,द्रविड़ और तमाम नस्ली समूहों के अलावा मेहनकशों,किसानों और थार्रों युवाओं का भी इस राष्ट्र से मुठभेड़ होने की भारी आशंका है।

इस अनिवार्य टकराव के  लक्षण देश भर में प्रगट होने लगे हैं।

भुखमरी की स्थिति में खाद्य आंदोलन या बेरोजगारी की हालत में मेहनतकशों और छात्रों के विद्रोह के हालात में यह राष्ट्र क्या करेगा,सेनाध्यक्ष के वक्तव्य से शायद उसका भी खुलासा हो गया है।

ऐसे हालात में  हिंदुत्व के कायाकल्प की वजह से मनुस्मृति राज बहाल रखने पर आमादा भारतीय राजनीति के सारे धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक मुलम्मे और कारपोरेट पैकेज शायद बेपर्दा हो जायेंगे।जितनी जल्दी हो,बेहतर होगा।

मौजूदा राष्ट्र का यह सैन्य अवतार हमें इतना गदगदाया हुआ है,राष्ट्र की संरचना इसतरह सिरे से बदल गयी है और राजनीति और राजकाज का जो हिंदुत्व कायाक्लप हो गया है,उसके चलते क हम यह सोच भी नहीं पा रहे हैं कि भविष्य में तेज हो रहे दलित आंदोलन,आदिवासी जनविद्रोह और दक्षिण भारत में जैसे दिल्ली के आधिपात्य के खिलाफ दक्षिण भारत के द्रविड़ अनार्य आत्मसम्मान के द्रविड़नाडु जैसी चुनौतियों के मुकाबले यह राष्ट्रधर्म का सैन्य दमनकारी चरित्र का नतीजा भारत की एकता और अकंडता के लिए कितना खतरनाक होने वाला है।

रामरथ से अवतरित कल्कि अवतार की ताजपोशी के बाद भारत राष्ट्र की संरचना और भारतीय राजनीति के हिंदुत्व कायाकल्प जितना अबाध हुआ है,वह वास्तव में भारतीय संविधान के बदले मनुस्मति विधान के ब्राह्मण धर्म के अंधकार का वृत्तांत है और सामाजिक यथार्थ और उत्पादन संबंध,अर्थव्यवस्थी पवित्र मिथकों के शिकंजे में हैं और विज्ञान विरोधी मानवविरोधी आटोमेशन की तकनीकी शिक्षा हमें इस चस तक पहुंचने नहीं देती।

वोटबैंक के लिए हिंदुत्व और राजकाज में जाति,भाषा,क्षेत्र और नस्ल के आधार पर रंगभेदी नरसंहार का गणित हमारी समझ से बाहर है।शिक्षा का अवसान है तो मनुष्यता का अंत है और सभ्यता गोहत्यानिषेध का रामजन्मभूमि आंदोलन है।

निरंकुश धर्मोन्मादी नस्ली फासिस्ट सत्ता के खिलाफ संसदीय गोलबंदी के तहत हिंदुत्व की राजनीति को हिंदुत्व की राजनीति के तहत मजबूत करने में सत्ता वर्ग का विपक्षी खेमा कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहा है।

मुक्तबाजारी हिंदुत्व के एकाधिकार वर्चस्व के मनुसमृति विधान लागू करने के लिए कारपोरेट फंडिंग से मुनाफा की शेयरबाजारी राजनीति का बगुला भगत पाखंडी चरित्र रामनाम की तर्ज पर जुमलेबाजी की हवा हवाई मीडियाई मोदियाई तौर तरीके के साथ 1991 से हिंदू राष्ट्र के एजंडे के साथ जिस बेशर्मी से चल रही है,उसका ताजा नजारा यह गोसर्वस्व राम के नाम नया राजसूय यज्ञ आयोजन है।

संसदीय विपक्ष जनता से पूरी तरह अलग थलग कारपोरेट हित में संघ परिवार के नूस्खे पर ही राजनीति कर रहा है और तमाम बुनियादी मुद्दे और सवाल जैसे सिरे से माध्यमों और विधाओं से गायब हैं,उसीतरह राजनीति और समाज में भी उनका कहीं अतापता नहीं है।

बुनियादी और आर्थिक सवालों को हाशिये पर रखकर सत्ता समीकरण के वोटबैंक राजनीति के तहत धर्मनिरपेक्षता और प्रगतिशीलता के नाम पर जानबूझकर संघ परिवार के हिंदुत्व एजंडे के गाय और राम के मुद्दे पर पक्ष प्रतिपक्ष की राजनीति और सारा विचार विमर्श सीमाबद्ध है और पीड़ित उत्पीड़ित आवाम की चीखें कहीं दर्ज हो नहीं रही हैं तो दूसरी तरह राष्ट्र का सैन्यीकरण फासिस्ट नस्ली रंगभेदी नरसंहार के एजंडे के तहत मुकम्मल है।

हम अरबों करोड़ों में खल रहे राजनेताओं को इतना डफर नहीं मानते कि वे संघ परिवार के बिछाये जाल में फंसकर राजकाज और राजनय,अर्थव्यवस्था के तमाम मुद्दों,कृषि संकट,कारोबार और उद्योग के सत्यानाश,बेरोजगारी छंटनी,मंदी,भुखमरी और बुनियादी सेवाओं और जरुरतों को क्रयशक्ति से जोड़ने के खिलाफ गोहत्या प्रतिबंध के खिलाफ गोमांस उत्सव जैसे संवेदनशील सांस्कृतिक जोखिम उठाकर अस्सी प्रतिशत से ज्यादा बहुसंख्य जनसंख्या के गाय और राम के नाम हिंदू सैन्य राष्ट्र के पक्ष में ध्रूवीकरण कैसे होने दे रहे हैं या फिर रामजन्मभूमि आंदोलन केतहत जनसंख्या की राजनीति के तहत धारिमिक ध्रवीकरण की संघी रणनीति को कामयाब करने में कोई कोर कसर छोड़ क्यों नहीं रहे हैं।

क्योंकि सिखों के नरसंहार के वक्त  भी राष्ट्र की एकता और अखंडता के नाम समूची राजनीति कांग्रेस की सत्ता और संघ परिवार के हिंदुत्व के साथ गोलबंद थी।सिखों के सैन्य दमन का भी भारतीय धर्मनिरपेक्ष और प्रगतिशील हिंदुत्ववादी सवर्ण राजनीति का कोई विरोध उसी तरह नहीं किया था जैसे कि भारत के अभिन्न अंग कश्मीर घाटी की बहुसंख्य मुस्लिम आबादी के खिलाफ युद्ध का कोई विरोध नहीं हो रहा है या मध्य भारत और आदिवासी भूगोल में भारतीय नागरिकों का अबाध कत्लेआम और पूरे देश में दलित और आदिवासी औरतों के साथ बलात्कार और समामूहिक बलात्कार के मुद्दे पर सड़क से संसद तक सन्नाटा पसरा हुआ है या पूर्वोत्तर में नस्ली रंगभेद के चलते वहां जारी नागरिक और मानवाधिकार के सैन्य दमने से हिंदू अंतरात्मा में कोई मानवीय संवेदना की सुनामी पैदा नहीं होती जैसे राम और गोमाता के नाम पर पैदा हो रही है।

यह समय सैन्य राष्ट्र में कारपोरेट नरबलि का समय है और वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति का हिंदुत्व राष्ट्रवाद हमारे हिंदू मानस के कारपोरेट उपभोक्ता मन और मानस में इंसानियत का कोई अहसास पैदा ही नहीं होने दे रहा है।

यही हमारी संसदीय राजनीति भी है।


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